आइये हमलोग Bhindi ki Kheti : भिंडी की वैज्ञानिक खेती के बारे में समझते हैं।
भिंडी की वैज्ञानिक खेती | सब्जियों की बागबानी
भिंडी की खेती सामान्यतः गर्मी एवं बरसात में होती है। यद्यपि अब हर मौसम में इसकी खेती होने लगी है, पर जाड़े में इस फसल की वृद्धि रुक जाती है।
* प्रमुख किस्में- पूसा सावनी, वैशाली वधू, लांग ग्रीन, परभानी क्रांति, PB-5/7, आदि भिंडी की विभिन्न किस्में हैं।
* खेत की तैयारी- भिंडी के बीज बोने के पहले खेत की तीन-चार जुताई कर ली जाती है। खेत से खरपतवार हटा दिए जाते हैं।
* वोने का समय- गरमा फसल के लिए फरवरी-मार्च में तथा बरसाती फसल के लिए जून-जुलाई में बीज बोए जाते हैं।
* बुआई- भिंडी के बीज ही बोए जाते है। बोने के पहले बीज को पानी में फुला लिया जाता है।
* दूरी- गरमा फसल के लिए 45 cm x 20 cm तथा बरसाती फसल के लिए 60 cm x 30 cm की दूरी पर बीज बोए जाते हैं।
* बीज-दर- प्रति हेक्टेयर 10-12 kg बीज की आवश्यकता होती है।
* खाद एवं उर्वरक- प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल कंपोस्ट, 2.5 से 3.0 क्विंटल यूरिया, 3.0-3.50 क्विंटल सिंगल सुपरफॉस्फेट और लगभग एक क्विंटल म्यूरिएट ऑफ पोटाश की आवश्यकता होती है।
* सिंचाई- वर्षाऋतु में सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, पर सुखाड़ के समय आवश्यकतानुसार सिंचाई करना तथा गरमा फसल में 8-10 दिनों पर सिंचाई करना जरूरी है। बरसात में खेत से पानी के निकास की व्यवस्था अनिवार्य है।
* निराई-गुड़ाई- पौधो के बढ़ने पर आवश्यकतानुसार खेत से खरपतवार हटा देना
आवश्यक है। इसके बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है।
* फसल-संरक्षण- भिंडी को प्रायः रूट रॉट, विल्ट तथा फलछेदक कीड़ों का खतरा रहता है। रूट रॉट से बचाने के लिए 3% कार्बोफुरान जड़ में डालना चाहिए। विल्ट से बचाव के लिए एक लीटर पानी में एक ग्राम कैप्टान घोलकर जड़ के पास की मिट्टी को भिगो देना चाहिए। फलछेदक कीड़े के प्रकोप से बचने के लिए कार्बरील के जलीय घोल को प्रति सप्ताह छिड़का जाता है।
* कटनी- फसल तैयार हो जाने पर थोड़े-थोड़े ही दिनों के अंतराल में भिंडी तोड़ी जाती है उपज प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल मिलती है।
आशा करता हूँ की आपको Bhindi ki Kheti : भिंडी की वैज्ञानिक खेती की पूरी जानकारी पसंद आई होगी। इसे देखने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
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