आइये हमलोग Falon ki Kheti : फलों की वैज्ञानिक खेती/बागबानी के बारे में समझते हैं।
फलों की वैज्ञानिक खेती/बागबानी
हमारे देश में फलों की बड़ी कमी है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार प्रति व्यक्ति को प्रति दिन कम से कम 115 ग्राम फल चाहिए। पर, वर्तमान समय में 20 ग्राम फल भी नहीं मिल पाता है। इस कारण लोग विभिन्न रोगों के शिकार हो रहे हैं तथा उनकी कार्यक्षमता घट रही है।
फलों से विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं जो शरीर नीरोग रखने के लिए आवश्यक हैं।संतुलित आहार के लिए हमारे प्रति दिन के भोजन में 115 ग्राम फल होना आवश्यक है। फलों का उत्पादन तो आर्थिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
फलों को यदि हम स्वाभाविक रूप से दाँतो से काटकर खाएँ तो हमारे दाँतो की सफाई भी हो जाती है, साथ ही इनकी आरोग्यता नष्ट नहीं होती। वास्तव में फलों की खटास और उनके रस में कीटाणुओं को नाश करने की अनुपम शक्ति होती है। इसलिए, फलों को खाने से दाँत और जीभ साफ रहते हैं। आम, सेब, नारंगी,
संतरा, नींबू, अनार, नासपाती आदि को दाँतो से काट-काटकर और चूस-चूसकर खाना चाहिए।
Falon ki Kheti : फलों की वैज्ञानिक खेती/बागबानी
यहाँ फलवाले वृक्षों की बागबानी के सामान्य तरीके पर प्रकाश डाला जा रहा है। विभिन्न फलों के पौधे एक बार लगाने के बाद काफी समय तक बने रहते है। इसलिए पौधे लगाने के शुरू में हुई भूल को बाद मे सुधारना कठिन हो जाता है। अतः फलों के बाग की योजना काफी सोच-समझकर बनाना चाहिए।
* स्थान का चुनाव- Falon ki Kheti के लिए बाग की भूमि समतल होना चाहिए। यदि भूमि समतल नहीं है तो बाग लगाने से पहले उसे समतल कर लेना चाहिए। भूमि में दो मीटर की गहराई तक कोई कठोर या कंकड़ीली तह नहीं होना चाहिए। खेत में पानी जमा नहीं रहना चाहिए। इसलिए जल-निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए।
* बाग का निरूपण- अच्छा लेआउट वही माना जाता है जिसमें हर पौधे के उचित विकास के लिए ठीक मात्रा में पोषक तत्त्व एवं सूर्य की रोशनी मिलते रहें तथा बागबानी-संबंधी सभी कार्य आसानी से किए जा सकें। आम तौर पर बाग लगाने के लिए निशानदेही की वर्गाकार विधि अधिक उपयोगी मानी जाती है। यह विधि सबसे सरल भी है।
यह विधि अपनाने के लिए सबसे पहले आधाररेखा निश्चित करें। आधाररेखा पौधों की पहली पंक्ति होती है, जिसकी खेत के किनारे से दूरी पौधे से पौधे की दूरी की आधी होती है। इस रेखा पर हर एक पौधे की जगह खूँटी गाड़कर निश्चित करें। यदि वर्गाकार विधि के केंद्र में एक और पौधा लगा दिया जाए तो इसे ‘पूरक विधि’ कहते हैं। पपीते को पूरक पौधे के रूप में लगाया जा सकता है तथा बाद में कम स्थान के कारण इसे निकाला जा सकता है।
* सिंचाई का प्रबंध- बाग लगाने से पहले सिंचाई का समुचित प्रबंध करें। बाग के लिए अच्छे पानी का नलकूप होना जरूरी है। छोटे पौधों को सर्दियों में हर 15 दिन के बाद तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह पानी देना आवश्यक होता है।
* गड्ढों की खुदाई एवं भराई- गड्ढों की खुदाई एवं भराई का काम पौधे लगाने के एक महीना पहले करना चाहिए। प्रत्येक गड्ढा 1m x 1m x 1m का होना चाहिए। हर गड्ढे की मिट्टी में 50 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, 2 किलोग्राम सिंगल सुपरफॉस्फेट तथा 100 ग्राम बी.एच.सी. 10% धूल मिलाकर जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊपर तक भर देना चाहिए, ताकि पानी लगने पर मिट्टी बैठकर जमीन के समतल हो जाए। पौधे गड्ढे के बीचोबीच रोपना चाहिए।
* उन्नत किस्मों का चुनाव- अधिक उपज के लिए फलदार वृक्षों की उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए जो खेत की मिट्टी, क्षेत्र की जलवायु तथा फल के गुणों पर आधारित हो।
* पौधे कब लगाए जाएँ- पौधे बरसात में जुलाई से सितंबर तक लगाना चाहिए। पौधे हमेशा किसी विश्वसनीय एवं प्रमाणित नर्सरी से ही लेना चाहिए ताकि रोगग्रस्त न हों। पिंडी (पौधे के साथ मिट्टी का गोला) के साथ पौधे को नर्सरी से निकालते समय यह ध्यान देना चाहिए कि जड़ें न टूटने पाएँ। इसके लिए पिंडी को चारों ओर से सूखी घास से ढँककर अच्छी तरह बाँध देना चाहिए।
पौधे नर्सरी से निकालने के बाद जितनी जल्दी हो सके गड्ढों में रोप देना चाहिए। यदि पौधे रोपने में ज्यादा समय लगने की आशंका हो तो पौधो पर पानी का छिड़काव थोड़े-थोड़े अंतराल पर करते रहना चाहिए। पौधे रोपने के बाद इनके चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह दबाकर तुरंत पानी देना चाहिए।
Falon ki Kheti : फलों की वैज्ञानिक खेती/बागबानी
* फल के पौधों का प्रसारण- फलवाले पौधों का प्रसारण बीज द्वारा तथा वानस्पतिक तरीकों द्वारा किया जाता है।
(क) बीज द्वारा प्रसारण- बीज द्वारा तैयार किए गए पौधे ‘बीजू पौधे’ कहलाते है। पौधों में पराग-सेचन तथा निषेचन के उपरांत फल बनते हैं। जब फल पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं तो उनके बीज को सुरक्षित रख लिया जाता है।
(ख) वानस्पतिक प्रसारण- वानस्पतिक प्रसारण में बिना बीज की सहायता के पौधों के हिस्सों, जैसे जड़, तना, पत्तियाँ आदि के द्वारा नए पौधे तैयार किए जाते हैं।
* वानस्पतिक प्रसारण की विधियाँ- वानस्पतिक प्रसारण में दो मुख्य विधियाँ
प्रचलित हैं।
(क) जड़ जमाकर (ख) भेंट कलम लगाकर
* (क) जड़ जमाकर- (i) कलम लगाना– यह पौधों के प्रसारण की एक ऐसी विधि है जिसमें पौधे के भागों को, जैसे जड़, तना या पत्ती को, पौधों से अलग करके उपयुक्त वातावरण में लगा दिया जाता है जिससे वे नए पेड़ को जन्म देते हैं। जड़ तैयार करने के लिए वृक्ष के इच्छित भाग को काटकर मिट्टी में रोपते हैं और इसी से उसमें जड़े निकलती हैं, जैसे अंगूर, नाशपाती आदि।
कम से कम 9-10 इंच लंबाई की कटिंग करना चाहिए, जिसमें तीन-चार गाँठे हों। जमीन में गाड़ने के समय 2 गाँठों को ऊपर छोड़कर शेष भाग को गाड़ देना चाहिए। कटिंग के ऊपरवाले भाग को सीधा तथा नीचेवाले भाग को तिरछा काटना चाहिए।
(ii) दाब कलम- इस विधि द्वारा किसी पेड़ से लगी डाली को मिट्टी में गाड़कर जड़ पैदा करते हैं। जब जड़ निकल आती है तो उस डाली को काटकर जमीन में लगाते हैं जो एक नए पौधे के रूप में तैयार हो जाता है।
* (ख) भेंट कलम- (i) साटा बनाना- वानस्पतिक प्रसारण की यह बहुत पुरानी विधि है। इसके द्वारा कलम बनाने के लिए तना या शाखा की जरूरत होती है। एक वृक्ष की कोई शाखा उसी मोटाई तथा उसी जाति के किसी दूसरे पौधे पर बाँध दी जाती है। साटा बनाने के लिए तना को शाखा के नजदीक लाया जाता है। फिर, तना में तेज चाकू से 3.5 से 5 इच की लंबाई में तना को मोटाई का एक तिहाई भाग इस प्रकार काट लिया जाता है कि कुछ छिलका तथा लकड़ी का भाग भी कट जाए।
इसी प्रकार, तने को भी काट लिया जाता है। फिर, दोनों कटे भागों को मिलाकर इस तरह बाँधा जाता है कि दोनों शाखाएँ पूरी तरह से जुड़ जाएँ। डेढ़ महीने बाद साटा अच्छी तरह जुड़ जाता है। जुटे हुए साटे में सबसे पहले तना के ऊपरी भाग को काट दिया जाता है। फिर, एक सप्ताह के बाद शाखा के नीचे मोटाई का आधा भाग काट दिया जाता है। 10-15 दिनों के बाद शाखा को प्रधान वृक्ष से काटकर अलग कर दिया जाता है। रोपण का यह सिद्धांत अनेक फलों- विशेषकर आम, अमरूद आदि- के प्रसारण में अपनाया जाता है।
(ii) विनीअर साटा- आम का पौधा अब विनीअर साटा द्वारा भी तैयार किया जा रहा है। साटा तैयार करने के लिए 10-15 सेंटीमीटर लंबा, 1-2 सेंटीमीटर मोटा तथा 8-10 माह पुराना तना लिया जाता है। रापण से 8-10 दिन पहले पैतृक वृक्ष से शाखा चुन ली जाती है और उसकी पत्तियाँ तोड़ दी जाती है।
अब चाकू से लकड़ी पर लगभग 3 सेटीमीटर लंबा कटान दिया जाता है। वैसा ही कटान तना पर जमीन से 15-20 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर दिया जाता है। अब दोनों को एकसाथ कसकर बाँध दिया जाता है। डेढ़ से दो महीने में शाखा तने से जुड़ जाती है। बाद में तने के ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है।
आगे कुछ मुख्य फलों की खेती या उत्पादन करने की वैज्ञानिक तरीके बताये गए हैं।
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Papita ki Kheti : पपीता की वैज्ञानिक खेती
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आशा करता हूँ की आपको Falon ki Kheti : फलों की वैज्ञानिक खेती/बागबानी की पूरी जानकारी पसंद आई होगी। इसे देखने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।