Let’s start this – Patti Bandhne ke Prakar (पट्टी बाँधने के प्रकार) | ड्रैसिंग और पट्टी
* पट्टी बाँधने की आवश्यकता :-
सामान्यतः काम करते समय, खेलकूद में या अन्य परिस्थितिवश हलकी दुर्घटना होने पर चोट लग जाती है, त्वचा कट-फट जाती है या अस्थि भंगित हो जाती है।ऐसी स्थिति में घाव से खून निकलने लगता है। बाहर से धूल, गर्द और किसी तरह की गंदगी तथा कीटाणु और विषाणुओं के घाव में प्रवेश करने का भय बना रहता है। अतः, घाव ढॅंककर कर रखने की आवश्यकता होती है। इसीलिए घाव पर मलहम लगाकर पट्टी बाँधते हैं। यदि हड्डी टूट जाए या मांसपेशियों में चोट हो तो प्रभावित स्थान को हिलने-डुलने न देने, स्थिर रखने तथा उसपर दबाव बनाए रखने के लिए भी पट्टी बाँधते हैं।
* पट्टी बाधने के नियम :-
1. कटे हुए या टूटे हुए अंग के अनुसार ही पट्टी की लंबाई-चौड़ाई होना चाहिए।
2. बाँधने के पहले पट्टी को लपेट लेना चाहिए।
3. पट्टी लपेटने का काम नीचे से ऊपर की ओर तथा भीतर से बाहर की ओर करना चाहिए।
4. पट्टी को संबद्ध स्थान पर इस तरह लपेटना चाहिए कि वह पहले के लपेटन के दो-तिहाई भाग को ढॅंक ले।
5. पट्टी की गाँठ हमेशा बाहर तथा ऊपर की ओर रहना चाहिए।
6. पट्टी को पूरी तरह लपेटने के बाद उसपर चिपकनेवाला फीता चिपका देना चाहिए ताकि पट्टी स्थिर रहे।
* पट्टियों के प्रकार :-
• पट्टियाँ साधारणतः तीन प्रकार की होती है-
1. लंबी (लपेटन) पट्टी
2. चिट्टेदार पट्टी
3. तिकोनी पट्टी।
• लंबी पट्टी – लंबी पट्टी घाव या कटे स्थान के चारो ओर लपेटकर बाँधी जाती है।
• चिट्टेदार पट्टी – यह पट्टी कपड़े को दोनों ओर चीरकर घाव पर बाँधी जाती है।
• तिकोनी पट्टी – इसे घाव पर मोड़कर बाँधते हैं।
पट्टियाँ झिल्लीदार कपडे़, मलमल या महीन मारकीन की बनी होती हैं।
• झोली पट्टी – एक और विधि है जो झोली विधि कहलाती है और देखने में ऐसा लगता है जैसे व्यक्ति गर्दन में झोली लगाए हुए हो। जहाँ व्यक्ति की भुजाओं को सहारा देना हो और हिलने-डुलने से बाजू के खिंचाव को कम करना होता है वहाँ झोली पट्टी काम आती है।
* विभिन्न स्थानों पर बाँधी जानेवाली पट्टियाँ :-
• सिर की पट्टी – इसके लिए तिकोनी पट्टी ली जाती है तथा इसके आधार को चार अंगुल अंदर की ओर मोड़ दिया जाता है। आहत व्यक्ति के पीछे खड़े होकर पट्टी का मुड़ा हुआ किनारा सिर पर भौंह के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि उसका सिरा व्यक्ति के सिर के पीछे सरका रहे। पट्टी के दोनों किनारों को कान के ऊपर से पीछे ले जाकर दाहिना किनारा बाईं ओर ऊपर और बायाँ किनारा दाहिनी ओर कर ललाट पर ले जाया जाता है। अब माथे पर बँधी पट्टी के निचले किनारे के निकट गाँठ लगा दिया जाता है। फिर एक हाथ से रोगी के सिर को पकड़कर दूसरे हाथ से पट्टी के पिछले सिरे को खींचकर सिर के ऊपर ले जाकर पिन से बाँध दिया जाता है।
• छाती की पट्टी – छाती पर बाँधने के लिए 1 मीटर लंबा और 45 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी ली जाती है। इसकी चौड़ाई के प्रत्येक छोर पर चार-चार सिरे इस तरह निकाल लिए जाते हैं जिससे बीच में छाती की चौड़ाई के बराबर बिना चीरा हुआ भाग बच जाए। इसके बाद पूरी पट्टी को व्यक्ति की छाती पर रखकर पट्टी के दोनों तरफ से पहले सिरे को गर्दन के पीछे बाँध देते हैं। इसके बाद बाकी तीन सिरों को बाँह तथा छाती के बीच पीठ की ओर ले जाकर बाँध देते हैं।
• नाक की पट्टी – नाक की पट्टी के लिए 80 सेंटीमीटर और 4 सेंटीमीटर चौड़ी चिट्टेदार पट्टी की जरूरत होती है। इसे चीरकर केवल 2 सेंटीमीटर जुटी पट्टी छोड़ देते हैं जिसे नाक पर रखते हैं ताकि आधी चौड़ाई नाक के ऊपर और आधी नाक के नीचे रहे। इसके बाद पट्टी के एक सिरे के एक भाग को कान के ऊपर से और दूसरे भाग को कान के नीचे से कसते हुए सिर के पीछे खोपड़ी के पास ले जाकर गाँठ बाँध देते हैं।
• हाथ की झोलीनुमा पट्टी – सामान्यतः हाथ की हड्डी टूट जाने पर बाँह को सहारा देने के लिए झोलीनुमा पट्टी बनाते हैं। इसमे तिकोनी पट्टी काम में लाते हैं। तिकोनी पट्टी की झोली बनाकर गले में बाँध दी जाती है। क्षतिग्रस्त हाथ या बाँह का अगला भाग या हथेली यदि चोटग्रस्त हो तो सहारा देने के लिए यह उपयुक्त है। इसमें पट्टी का एक कोना गर्दन के पीछे से लाकर तथा दूसरा कोना सामने से तानकर कंधे पर बाँध देते हैं। इसमें घायल हाथ पट्टी के भीतर स्थिर रहता है।
• घुटने की पट्टी – ठेहुना या घुटना आहत होने पर यहाँ तिकोनी पट्टी बाँधते हैं। पहले आहत घुटने को समकोण पर मोड़ते हैं। इसके बाद खुली पट्टी के आधार को मोड़ते हुए तथा सिरे को ऊपर रखते हुए पट्टी के आधार को घुटने के नीचे चारों ओर लपेटते हैं। फिर सामने की ओर घुटने से थोड़ा ऊपर हटकर बाँध देते हैं। पुनः इस सिरे को तानकर ऊपर ले जाते हैं और पिन लगा देते हैं।
• एड़ी की पट्टी – इसके लिए झिल्लीदार 10 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी लेते हैं। एड़ी के ऊपर तथा नीचे समानांतर 10 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी को 5 या 6 बार लपेट देते हैं ताकि एड़ी पूरी तरह ढॅंक जाती है। अब पट्टी के अंतिम सिरे पर गाँठ बाँध देते हैं।
• अँगुली की पट्टी – इसके लिए लपेटन पट्टी (रौलर बैंडेज) का चयन करते हैं। इस पट्टी की लंबाई 1 मीटर और चौड़ाई 4 सेंटीमीटर होती है। पट्टी को अँगुली के चारों ओर लपेट देते हैं। इसके बाद पट्टी को तिरछा कर कलाई में दो-तीन बार लपेटकर गाँठ बाँध देते हैं।
• पैर की पट्टी – घायल पैर में बाँधने के लिए लंबी पट्टी का व्यवहार किया जाता है। घाव के स्थान से दो इंच ऊपर और दो इंच नीचे तक पट्टी लपेट देते हैं। फिर पट्टी के दूसरे सिरे को बीच से फाड़कर गाँठ बाँध देते हैं।
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